आईवीएफ गर्भावस्था के लक्षण
आईवीएफ या इन विट्रो फर्टिलाइजेशन एक ऐसा इलाज है जो कि कई माता-पिता को पेरेंटिंग का अनुभव करने में बहुत अधिक सहायता करता है। इस प्रक्रिया में अंडाशय से अंडे निकाले जाते हैं और उन्हें शुक्राणु के साथ निषेचित कर दिया जाता हैं। यह पूरा प्रोसिजर अपने एक साथी या फिर अपने किसी डोनर के अंडे और डोनर के शुक्राणु का भी उपयोग किया जा सकता है। शुक्राणु के साथ निषेचित अंडे को सामान्य भाषा में भ्रूण कहा जाता है और उन्हें गर्भाशय में डाल दिया जाता है। भ्रूण गर्भाशय में प्रत्यारोपित होता है और इसी के परिणामस्वरूप गर्भावस्था सफल होती है। देखा जाए तो कुछ महिलाओं को आईवीएफ के बाद गर्भावस्था के लक्षण महसूस होने शुरु हो जाते है पर कई महिलाओं को यह भी एहसास नहीं होता है कि वो गर्भवती है या नहीं। उन्हें यह तब पता चलता है जब वे स्कैन करवा लेती हैं और उसकी रिपोर्ट को देखती हैं।
आईवीएफ के बाद गर्भावस्था के लक्षण क्या हैं?
आईवीएफ गर्भावस्था के लक्षण नैचुरल तरीके से गर्भवती हुए लक्षणों जैसे ही होते हैं। इस दौरान आपके द्वारा अनुभव किया जाने वाला कोई भी लक्षण इस बात का संकेत होता है कि आपका शरीर आपकी जिंदगी के इस नए स्टेज का स्वागत करने की तैयारी कर रहा है। पर आईवीएफ से गुजरने वाली हर महिला आईवीएफ के बाद गर्भावस्था के हर लक्षण का अनुभव करे यह बिल्कुल भी जरूरी नहीं है। हर महिला अलग अलग होती है, और आईवीएफ गर्भावस्था के लक्षण सप्ताह दर सप्ताह एक महिला से दूसरी महिला में भी अलग अलग होते हैं।
आईवीएफ गर्भावस्था के लक्षणों में शामिल हैं:
योनि में ब्लीडिंग या स्पॉटिंग का होना
क्या आप इस बात को जानते हैं कि लगभग 42% महिलाओं को आईवीएफ के स्पॉटिंग या ब्लीडिंग होती है। स्पॉटिंग को इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग भी कहा जाता है और यह भूरे या फिर काले रंग की होती है। यह दो हफ्ते के बीच में होता है या ये कहें कि यह तब होता है जब भ्रूण गर्भाशय की दीवार से जुड़ जाता है।
पीरियड का मिस होना
मिस्ड पीरियड आईवीएफ गर्भावस्था के लक्षण में से एक है। अगर आपके पीरियड्स की क्लॉक सही तरीके से चल रहा है तो इस दौरान पीरियड का मिस होना इस बात का संकेत हैं कि आपको प्रेगनेंसी टेस्ट करवाना चाहिए। पर अगर आपको पीरियड्स सही तरीके से नहीं आ रहें हैं तो आपको कई अन्य समस्याएं भी हो सकती हैं। इस दौरान आपको किसी डॉक्टर की सलाह लेनी पड़ सकती है।
सूजन का होना
पीरियड्स के करीब आने पर महिलाएं अक्सर बहुत फूला हुआ सा महसूस करती हैं पर यह लक्षण कई बार गलत भी हो सकता है। यह प्रेगनेंसी का एक निश्चित संकेत होता है और खासकर तब जब आप पेट के आसपास फूला हुआ महसूस करते हैं तो प्रेग्नेंट होने की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाती है। ब्लोटिंग प्रोजेस्टेरोन की संख्या में बढ़ोतरी के कारण भी सूजन हो सकता है इसलिए यह पाचन तंत्र को बहुत अधिक धीमा कर देता है और आपको सामान्य से अधिक भरा हुआ महसूस होने लगता या फिर बहुत फूला हुआ महसूस कराता है।
और अगर आप गर्भवती हैं, तो आपको पीरियड्स की तारीख से ठीक पहले भी सूजन हो सकती है। और यह तब भी हो सकता है जब आप आईवीएफ के दौरान और भ्रूण के बाद प्रोजेस्टेरोन के साथ ही कई अन्य तरह की दवाएं लेते हैं।
पेशाब में वृद्धि का होना
आईवीएफ गर्भावस्था के लक्षण में आपको बार-बार बाथरूम जाना भी पड़ सकता है क्योंकि गर्भावस्था का यह एक और संकेत हो सकता है जिसे भुलाया नहीं जा सकता है क्योंकि यह लक्षण अधिकतर गर्भवती महिलाओं में दिखने को मिलता हैं। आधी रात को पहले के दिनों की तुलना में अधिक बार पेशाब करने की इच्छा का होना या पेशाब पर खुद का नियंत्रण न होना भी आईवीएफ में गर्भावस्था के शुरुआती लक्षण हो सकते हैं जोकि कई महिलाओं को इसका अनुभव हो सकता है। अधिकतर समय महिलाओं को पीरियड्स मिस होने के बाद पेशाब करने की इच्छा बढ़ने लगती है। लेकिन कई अगर आपको पीरियड्स मिस होने से पहले की तुलना में अधिक बार पेशाब करने जरूरत मासूस हो रही है तो यह जरूरी नहीं है कि यह गर्भावस्था का ही संकेत होता हो।
ब्रेस्ट में बदलाव का आना
आईवीएफ गर्भावस्था के लक्षण में से एक यह भी है कि स्तन में बदलाव का होना। आईवीएफ के दौरान प्रोजेस्टेरोन हार्मोन थेरेपी के कारण ज्यादातर महिलाओं को दर्द होने लगता है और कोमल और उनके ब्रेस्ट भी भारी होने लगते है। स्तन में होने वाला बदलाव भी प्राकृतिक गर्भावस्था के लक्षण होते हैं और हार्मोन के स्तर में वृद्धि के कारण भी होते हैं।
निपल्स की सूजन का और अधिक सख्त होना
इस दौरान गले में खराश का होना और भारी स्तन का होना भी असुविधा का कारण बन सकता है। सूजन और निपल्स के सख्त होने से दर्द और परेशानी भी बढ़ सकती है। निपल्स में होने वाला बदलाव भी एक लक्षण होता है जो कि कई महिलाओं को भ्रूण के आने से पहले और हार्मोन एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन देने के बाद अनुभव होना शुरू हो जाता है। ये हार्मोन लिक्विड फ्लोटिंग का भी कारण बनते हैं और इसके परिणामस्वरूप ही बहुत फूला हुआ और भारी भारी महसूस करने लगते है।
पेट में मरोड़ का उठना
जबकि कुछ महिलाओं को ब्लीडिंग होने की समस्या महसूस हो सकती है और कई अन्य को नहीं भी हो सकती है। लेकिन इसके बाद होने वाले हार्मोनल बदलाव से ऐंठन हो सकती है और इसे इम्प्लांटेशन क्रैम्प कहा जाता है। ये ऐंठन उतनी दर्दनाक और असहज नहीं होती जितनी कि आप अपने पीरियड्स के दौरान महसूस करते हैं। हल्के से होने वाला ऐंठन भ्रूण पहुंचने का संकेत सा होता जो कभी-कभी आपको बीमार सा भी महसूस करा सकता है।
पीरियड्स में ऐंठन का होना एक सामान्य सा संकेत होता है। लेकिन कई महिलाओं को ऐंठन तब महसूस होता है जब भ्रूण गर्भाशय की दीवार पर चला जाता है। भ्रूण के चले जाने के बाद हल्के ऐंठन और पैल्विक में असुविधा का होना बहुत आम बात हैं।
मॉर्निंग सिकनेस का होना और जी का मचलना
सप्ताह दर सप्ताह दिखने वाले आईवीएफ गर्भावस्था के लक्षण एक महिला से दूसरी महिला में अलग अलग तरह के होते हैं। क्या आप जानते हैं कि कई गर्भवती महिलाओं को मतली और मॉर्निंग सिकनेस का अनुभव होता है पर कई महिलाओं को इसका अनुभव नहीं होता है? यह आमतौर पर आईवीएफ के दौरान भ्रूण के स्थापित होने के दो सप्ताह बाद शुरू हो जाता है और या उन महिलाओं में अनुभव किया जाता है जिनके शरीर में हार्मोन का स्तर बहुत अधिक बढ़ जाता है। पीरियड्स मिस होने के दो हफ्ते बाद ज्यादातर महिलाओं का जी बहुत अधिक मिचलाने लगता है। महिलाओं को बहुत बीमार महसूस होने के साथ साथ जी मिचलाने की समस्या बढ़ने लगती है हालांकि यह आईवीएफ गर्भावस्था के महत्वपूर्ण लक्षणों में से एक है, लेकिन अगर आप सामान्य से अधिक बीमार महसूस करते हैं तो आप अपने डॉक्टर से सलाह ले सकती हैं और उनके निर्देशों का पालन कर सकती हैं।
चक्कर आना और झुनझुनी का होना
भ्रूण के स्थानांतरण के बाद चक्कर आना और झुनझुनी का होना या सनसनी जैसा महसूस होना एक बहुत ही सामान्य सा लक्षण है। यह डिम्बग्रंथि में उत्तेजना के कारण होता है जोकि महिलाओं को बहुत अधिक अनुभव होता है। कभी-कभी वे शरीर द्वारा मासिक धर्म की तैयारी करने या कूपिक पंचर के परिणाम के रूप में भी दिख सकते हैं। अगर झुनझुनी और चक्कर आने की समस्या बहुत अधिक हो रही है तो अपने डॉक्टर से सम्पर्क करें और उनके निर्देशों का पालन जरूर करें।
आउटलुक
आपको अपनी गर्भावस्था की पुष्टि करने के लिए अपने डॉक्टर से सलाह जरूर लेनी चाहिए। अगर आप किसी तरह के संदेह में हैं तो आप अपने नजदीकी अस्पताल में जाकर जरूर जांच करवाएं और डॉक्टर द्वारा दिए जा रहे दिशा निर्देशों का पालन जरूर करें।