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बेसल कैंसर के लक्षण

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बेसल सेल कार्सिनोमा एक तरह का स्किन कैंसर है।  बेसल सेल कार्सिनोमा बेसल कोशिकाओं में शुरू होता है। यह स्किन के भीतर एक प्रकार की कोशिका होती है जोकि पुरानी त्वचा कोशिकायों के मर जाने पर नई त्वचा कोशिकाओं का निर्माण करती है।

बेसल सेल कैंसर के लक्षण की बात करें तो बेसल सेल कार्सिनोमा अक्सर स्किन पर पारदर्शी रूप में दिखता है पर यह किसी अलग रूप में भी दिख सकता है। बेसल सेल कार्सिनोमा अक्सर स्किन के उन क्षेत्रों पर होता है जोकि सूर्य के बहुत अधिक संपर्क में आते हैं उदाहरण के रूप में देखें तो सिर और गर्दन में बेसल सेल कार्सिनोमा कैंसर होने का खतरा होता है। 

अधिकांश बेसल सेल कैंसर को सूरज की रोशनी से पराबैंगनी (यूवी) रेडियेशन के लंबे समय तक संपर्क में आने के कारण माना जाता है।  धूप से बचने और सनस्क्रीन का उपयोग करने से बेसल सेल कैंसर से बचाव में मदद मिल सकती है।

बेसल सेल कैंसर के लक्षण

बेसल सेल कैंसर के लक्षण सामान्य तौर पर किसी व्यक्ति के शरीर के सूरज के संपर्क में आने वाले हिस्सों और विशेष रूप से यह सिर और गर्दन में होता है। बहुत कम संभावना होती है कि यह शरीर के उन हिस्सों में भी हो जोकि हमेशा से ढके रहते है।

बेसल सेल कैंसर के लक्षण हमें स्किन में होने वाले बदलाव के रूप में दिखाई होता है, जैसे कि एक ऐसा घाव जोकि बढ़ता जा रहा है जोकि ठीक नहीं हो रहा है। स्किन में इन बदलावों (घावों) में आमतौर पर निम्नलिखित में से कोई न कोई विशेषता जरूर होती है:

  • इसमें एक सफेद रंग या गुलाबी रंग का बंप हो सकता है जोकि स्किन के थोड़े ही ऊपर आया होता है। इसमें छोटी-छोटी ब्लड सेल्स दिखाई देने लगती है। बहुत गहरे रंग की स्किन में हल्का सा घाव भी दिख सकता है।
  • बेसल सेल कैंसर का सबसे आम लक्षण तब है यह कि इसमें घाव अकसर चेहरे और कान के आसपास ही होता है। घाव बढ़ने पर घाव ने खून बह सकता है और उस पर लगी हुई पपड़ी भी उचड़ सकती है।
  • चोट या घाव भूरे या गहरे काले और नीले रंग का भी हो सकता है।
  • पपड़ीदार और लाल रंग का पैच छाती पर दिख सकता है और समय बढ़ने के साथ साथ ये पैच भी बहुत अधिक बढ़ सकते है।

डॉक्टर को कब दिखाना है ?

अगर आपकी स्किन में बहुत ज्यादा बदलाव हो रहा है या बेसल सेल कैंसर के लक्षण दिख रहे हैं, तो तुरंत अपने डॉक्टर से मिले और उनकी सलाह लें तथा उस पर अमल करें।

बेसल कैंसर के कारण

बेसल सेल का कैंसर तब होता है जब स्किन बेसल सेल्स में अपने डीएनए को बदलने का काम करने लगती है।

बेसल सेल एपिडर्मिस के निचले भागों में पाई जाती हैं और यह स्किन की सबसे बाहरी परत होती है। बेसल सेल्स नई स्किन से जुड़ी कोशिकाओं का निर्माण करती हैं। जैसे ही नई स्किन कोशिकाएं बनती हैं वे पुरानी कोशिकाओं को स्किन के ऊपरी हिस्से की ओर धकेलती हैं और जहां पुरानी कोशिकाएं मर जाती हैं और शरीर से अलग हो जाती हैं।

नई स्किन की कोशिकाओं के बनने की प्रक्रिया को बेसल सेल के डीएनए द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। डीएनए में ऐसे निर्देश होते हैं जो कि बताते हैं सेल्स सेल्स कैसे बनते हैं। जब बहुत ज्यादा से उस बनने लगता है तो वह जमने लगता है और यही बाद में ट्यूमर या फिर कैंसर को जन्म देता है। कैंसर एक घाव के रूप में स्किन पर दिखाई देता है।  

पराबैंगनी किरणे और अन्य कई कारण

यह देखा गया है कि बेसल सेल के डीएनए को अधिकतर नुकसान सूर्य के प्रकाश में पाए जाने वाली पैराबैंगनी अर्थात् यूवी किरणों के कारण होता है या फिर मशीनों से निकलने वाली रेडिएशन भी इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। किन कारणों से भी बेसल सेल का कैंसर हो सकता है परंतु अभी इसमें और अधिक शोध करने की आवश्यकता है जिससे उन कारणों का पता लगाया जा सके।

बेसल सेल कैंसर के जोखिम

बेसल सेल कार्सिनोमा के जोखिम को बढ़ाने वाले कारकों में निम्न कारक शामिल हैं:

सेंसिटिव या गोरी स्किन

बेसल सेल कैंसर का खतरा उन लोगों में ठीक होता है जिनके स्किन में पर बहुत जल्दी झाइयां पड़ जाती हैं या वो जल जाते हैं। बेसल सेल कैंसर उन लोगों में भी बहुत अधिक होता है जिनकी स्किन बहुत हल्की, लाल या गिरे रंग की होती है। 

बढ़ती उम्र के कारण

बेसल सेल कैंसर होने में काफी वक्त लगता है इसलिए यह अक्सर बुजुर्गों में अधिक होता है लेकिन यह 20 से 40 वर्ष के लोगों को भी बहुत अधिक प्रभावित कर सकता है। यह युवा लोगों में आम होता जा रहा है।

आनुवांशिक कारणों से बेसल सेल कैंसर का खतरा

अगर किसी व्यक्ति को एक या उससे अधिक बार बेसल सेल कैंसर हुआ है तो उसे दोबारा भी यह कैंसर हो सकता है। अगर आपके परिवार में किसी को पहले भी स्किन कैंसर हुआ है तो बेसल सेल कैंसर होने की संभावना बढ़ सकती है।

कई दवाओं के कारण

हमारे इम्यून सिस्टम पर असर डालने वाली दवाएं जैसे कि ट्रांसप्लांट सर्जरी के बाद उपयोग की जाने वाली एंटी रिजेक्शन दवाएं स्किन कैंसर के खतरे को बहुत अधिक बढ़ा देती हैं।

आर्सेनिक के संपर्क में आने के कारण

  और सैनिक एक बहुत ही जहरीली धातु है जोकि हमारे आसपास के पर्यावरण में पाई जाती है और यह बेसल सेल कैंसर को बढ़ाने का काम करती है। हरेक व्यक्ति में थोड़ा बहुत आर्सेनिक पाया जाता है।

बेसल सेल कैंसर से बचाव

बेसल सेल कैंसर से बचने या उसके जोखिम को कम करने के लिए आप निम्नलिखित बातों को अमल में ला सकते हैं- 

कड़ी धूप में निकलने से बचें

कई जगहों पर सुबह 10:00 बजे से लेकर शाम के 4:00 बजे तक बहुत तेज धूप होती है। इस समय घर से निकलने से बचना चाहिए और बाहरी गतिविधियों को तब शेड्यूल करना चाहिए जब आसमान में बादल छाए हैं या सर्दियों का मौसम हो।

 हमेशा सनस्क्रीन पहनें

 जब आसमान में बादल हो तो उस समय भी दिन में कम से कम 30 के एसपीएफ़ वाले ब्रॉड-स्पेक्ट्रम सनस्क्रीन का इस्तेमाल करें। सनस्क्रीन को बहुत ही कंफर्टेबल तरीके से लगाएं और अगर आपको पसीना आ रहा है या आप पानी में तैर रहें हैं तो दो घंटे बाद दुबारा से लगा लें। कुछ कंपनियां धूप से बचने के लिए सुरक्षात्मक कपड़े भी बेचती हैं। कपड़े आप एक अच्छे से ब्रांड का खरीद सकते हैं। धूप का चश्मा हमेशा लिए रहे और ऐसे धूप के चश्मे को ढूंढें जो कि हर एक तरह के यूवी किरणों से आप को सुरक्षित रखें।  

 टैनिंग बेड से बचें 

 टैनिंग बेड यूवी किरणों का उत्सर्जन बहुत अधिक मात्रा में करते हैं और स्किन के कैंसर के खतरे को बहुत अधिक बढ़ा सकते हैं।

 नियमित रूप से स्किन टेस्ट करवाएं

एक समय अंतराल के बाद अपने स्किन की जांच कराएं और उसमें हो रहे बदलाव के बारे में अपने डॉक्टर से जरूर चर्चा करें। स्किन जांच में मॉल्स, झाइयां, थक्के और साथ ही बर्थ मार्क में हो रहे बदलाव का पता चल जाता है। शीशे के माध्यम से अपने चेहरे गर्दन कान और सिर के स्किन की भी जांच करें। जांच करते समय अपने सीने पर और बाहों सहित हाथों के ऊपर नीचे की भी जांच करें। अपने पैरों के आगे पीछे जिसमें तलवों सहित पैर की उंगलियों की भी जांच जरूर करें। अपने प्राइवेट पार्ट की भी जांच करें।

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